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दो रिकॉर्ड बनेंगे…पहला दीपों की रोशनी के साथ, दूसरा अंधेरे के बाद
ऐसे होगा वल्र्ड रिकॉर्ड
केवल पांच मिनट तक एकसाथ जितने दीए जले, उनकी गिनती होगी।
गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम है दीयों का प्रज्ज्वलन। एक साथ दीए जले तो ही हम अयोध्या के रिकॉर्ड को तोड़कर नया रिकॉर्ड कायम कर पाएंगे.
गिनीज बुक के 3 ड्रोन कैमरे व 20 वीडियो कैमरे पांच मिनट में शिप्रा तट पर लगाए गए दीपकों के फोटो खींचेंगे। इस अवधि में जितने दीपक जलते पाए जाएंगे, उन्हें ही रिकॉर्ड में शामिल किया जाएगा। यानी पूरे 13 लाख दीपक इतनी तेजी से जलाने होंगे कि पहला दीपक जलाने के बाद आखिरी दीपक जलाने के बीच इतना ज्यादा समय न हो की पहला बुझ जाए। कतारों में कोई दीपक जलने से छूटे नहीं।
गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के 60 सदस्य घाटों पर दीपक जमाने के बाद व जलाने के बाद गिनती करेंगे।
सभी दीप जल जाने की घोषणा के बाद ड्रोन, वीडियो कैमरे 5 मिनट में फोटोग्राफी करेंगे।
गणना कार्य की निगरानी के लिए 20 निर्णायक गवाह बनाए जाएंगे।
कैमरों से लिए फोटो की गणना, मैन्युअल की गई गणना व गवाहों द्वारा दिए गए बयान के आधार पर जलाए गए दीपकों की संख्या तय होगी।
यह काम दीप जलाने के बाद 30 मिनट में पूरा हो जाएगा।
जले दीपकों की संख्या की घोषणा होते ही 20 मिनट गिनीज बुक द्वारा प्रमाण पत्र जारी कर सौंप दिया जाएगा।
13,000 स्वयंसेवक देंगे सेवा…13000 स्वयंसेवकों क्षिप्रा घाट पर सेवा देंगे। 17593 स्व-पंजीकरण किया जा चुका है। कॉलेजों से 2913, निजी स्कूलों से 1210, सरकारी स्कूलों से 3090, राष्ट्रीय सेवा योजना से 1023, खेल और युवा कल्याण से 552, तीर्थ पुरोहितों, पंडितों और अखाड़ों से 513, क्षत्रिय मराठा समुदाय से 56, कायस्थ समुदाय से 285, कायस्थ समुदाय से 30 शामिल हैं।
राठौर समुदाय से 95, गुजराती समुदाय से 120, सिंधी समुदाय से 100, अग्रवाल समुदाय से 173, सामाजिक संगठनों, समूहो3, एनजीओ व सामाजिक कल्याण समूहों से 1027, कोचिंग संस्थानों से 1300, व्यावसायिक संगठनों से 111 और पंचायत से 4000 एवं ग्रामीण क्षेत्रों के स्वयंसेवक द्वारा पंजीयन करवाया गया है।
जीरो वेस्ट का टारगेट भी
एक साथ लाखों दीपक प्रज्जवलित करने के साथ आयोजन के बाद की व्यवस्था को रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज करने का प्रयास होगा। उज्जैन शहर, क्षिप्रा नदी के तट पर शून्य अपशिष्ट के साथ गिनीज वल्र्ड रिकार्ड के लिए भी प्रयास किया जाएगा। इसके लिए जीरो वेस्ट टारगेट की रुपरेखा बनाई गई है।
स्वयंसेवकों का पंजीकरण (लगभग 13000) क्यूआर कोड ऐप पर आधारित होगा और पहचान पत्र पुनर्नवीनीकरण से बनाए जाएंगे कागज। ठ्ठ उत्सव के बाद, पर्यावरण पर कम प्रभाव यानी कम करने, पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण करने के लिए थ्रीआर अवधारणा में 13 लाख दीपों का उपयोग किया जाएगा।
दुनिया की सबसे बड़ी मिट्टी के दीये की मूर्ति विकसित करने के लिए बचे हुए मिट्टी के दीयों का उपयोग किया जाएगा। ठ्ठ कार्यक्रम के बाद, शेष तेल का उपयोग गौशाला, आदि में खाद्य पदार्थों के लिए किया जाएगा।
थ्रीआर अन्तर्गत उद्यान में कुर्सियों, बेंच, बर्तन आदि बनाने के लिए लगभग 14000 खाली तेल की बोतलों का पुन: उपयोग किया जाएगा ठ्ठ मोमबत्तियों को जलाने के लिए पेपर माचिस का उपयोग किया जाएगा।
जली हुई बत्तियों से रैन बसेरा में बेड बनाने के लिए पुन: उपयोग किया जाएगा।
खाने के लिए केवल बायो-डिग्रेडेबल कटलरी/प्लेट का उपयोग किया जाएगा।
घर-घर,दर-दर दीपक
शिव ज्योति अर्पणम महोत्सव मनाने के लिए क्षिप्रा के घाटों, सभी मंदिरों, सार्वजनिक स्थलों और शासकीय परिसरों में, दीप जलाए जाएंगे। शहर के सभी निवासी भी अपने घरों में 5-5 दीपक जलाएं।
इस आयोजन में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, बाजारों, दुकानों की साज-सज्जा के साथ-साथ दीप जलाना भी शामिल है। क्षिप्रा के तट पर 13 लाख दीपक जलाने का लक्ष्य रखा गया है।
महाकाल मंदिर 151000, मगलनाथ मंदिर 11000, कालभैरव मंदिर एवं घाट पर 10000, गढ़कालिका मंदिर 1100, सिद्धवट मंदिर एवं घाट पर 6000, हरसिद्धि मंदिर 5000, टॉवर चौक 100000, अन्य सार्वजनिक स्थलों पर 200000। इसी प्रकार क्षिप्रा नदी के तट पर, सार्वजनिक स्थानों और घर-घर में जलाये जाने वाले दीपों की संख्या 21 लाख होगी।